वो देखो डॉक्टर , मारो साले को।
जब छोटा तब मरीज की सेवा करने का जूनून था
डॉक्टर बनूँगा , ये बोलने में ही सुकून था
लोग कहते "आप का बेटा बहुत होशियार है
डॉक्टरी में लगा दो, करियर तैयार है"
हुए तैयार जी तोड़ मेहनत करने को
वो देखो डॉक्टर , मारो साले को।
घर से सालों साल दूर रहा मैं
दिन रात किताबों में डूबा रहा मैं
जब अपनी जवानी मरीजों के संग बिताई
तब जाकर डॉक्टरी कुछ समज में आई
निकला था मैं रोगी की सेवा करने को
वो देखो डॉक्टर , मारो साले को।
जब मेरे दोस्त इंजीनियर बन डॉलर कमा रहे थे
मेरा खर्चा तो मेरे पापा उठा रहे थे
इधर घरवाले शादी ब्याह त्यौहार अकेले मनाना रहे थे
उधर हम पेशाब टट्टी खून की जांच करा रहे थे
पढ़ते रहे हम हज़ारों पन्ने मुख़स्त कर जाने को
वो देखो डॉक्टर , मारो साले को।
मिर्गी का दौरा लेकर भर्ती हुआ एक बच्चा था
दवाइयाँ दी सब, लेकिन परिणाम न कुछ अच्छा था
दो दिनों से ड्यूटी था मैं कर रहा
आँखों में नींद, शरीर था मेरा थक रहा
लगा हुआ था फिर भी उसकी जान बचाने को
वो देखो डॉक्टर, मारो साले को।
आखों के सामने अंधकार छा रहा था
मृत्यु की ओर बच्चा खिंचा जा रहा था
कोशिश की बहुत यम से जीतने उसकी जान को
पर बचा न सके हम उस नन्ही जान को
कोस रहा था मैं जब उपरवाले भगवान को
सामने से आवाज़ आई "वो देखो डॉक्टर, मारो साले को।"
डॉ सुमित पेड़ीवाल
Sumit Periwal
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